नई दिल्ली। देवशयनी एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, ये दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित है। देवशयनी एकादशी जिसे हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इन चार माह किसी भी तरह के मांगलिंक कार्य नहीं किए जाते। इस साल देवशयनी एकादशी 20 जुलाई दिन मंगलवार को पड़ रही है।
मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत रख के भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से आपको विष्णु जी की विशेष कृपा की प्राप्ति होगी और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
हिंदी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल के एकादशी को देवशयनी एकादशी के व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन से भगवान विष्णु चातुर्मास के लिए निद्रा पर चले जाते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी मंगलवार 20 जुलाई 2021 को पड़ रहा है, इसलिए इस दिन से लेकर चार माह तक कोई शुभ कार्य नहीं होगा।
देवशयनी एकादशी को हरिशयनी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं में देवशयनी एकादशी व्रत सबसे श्रेष्ठ एकादशी मानी जाती है। इस व्रत से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है। आज हम देवशयनी एकादशी की कथा का विस्तार से वर्णन करेंगे।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे। मांधाता के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। एक बार उनके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं होने की वजह से भयंकर अकाल पड़ा गया था। अकाल से चारों ओर त्रासदी का माहौल बन गया था। इस वजह से यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि कार्य में कम होने लगे थे। प्रजा ने अपने राजा के पास जाकर अपने दर्द के बारे में बताया।
राजा इस अकाल से चिंतित थे। उन्हें लगता था कि उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया, जिसकी सजा इतने कठोर रुप में मिल रहा था। इस संकट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। जंगल में विचरण करते हुए एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए। ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने कारण पूछा।
राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं, फिर भी में राज्य की ऐसी हालत क्यों है? कृपया इसका समाधान करें। राजा की बात सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है। इस युग में छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। महर्षि अंगिरा ने राजा मांधाता को बताया कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के फल स्वरूप अवश्य ही वर्षा होगी।
महर्षि अंगिरा के निर्देश के बाद राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए। उन्होंने चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिसके बाद राज्य में मूसलधार वर्षा हुई। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया है। देवशयनी एकादशी के व्रत से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।