- बदलती जीवन शैली और पोषण की कमी से बढ़ रहे प्रीमेच्योर डिलीवरी के मामले
गाजियाबाद। बदलती जीवन शैली और पोषण की कमी से प्रीमेच्योर डिलीवरी के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसा होना मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। दरअसल समय से पहले प्रसव होने से शिशु का गर्भकाल का समय हो जाने से उसके आंतरिक अंगों का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है। इसलिए समय से पूर्व जन्मे बच्चों को अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। इसी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन हर वर्ष 17 नवंबर को वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे का आयोजन करता है। जिला महिला चिकित्सालय की पूर्व सीएमएस और स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. श्रद्धा का कहना है, सामान्य तौर पर गर्भकाल 40 सप्ताह का होता है। 37 सप्ताह या उससे पूर्व जन्मे बच्चे प्रीमेच्योर कहे जाते हैं।
समय पूर्व प्रसव होने के कई कारण हैं। देखा जाए तो बदलती जीवनशैली भी काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। अधिक समय तक खड़े होकर काम करने, सिगरेट और शराब का सेवन करने वाली महिलाओं का समय से पूर्व प्रसव होने की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा हाइपरटेंशन और एनीमिया भी इसका बड़ा कारण है। बदलती जीवन शैली में तनाव के चलते होने वाला उच्च रक्तचाप प्रीमेच्योर डिलीवरी में बड़ा खलनायक बनकर उभर रहा। खानपान की गलत आदतों के चलते संतुलित और पोषण युक्त भोजन न लेने से एनीमिया का शिकार होने वाली गर्भवती भी इस दिक्कत का आसानी से शिकार हो जाती हैं। इसके लिए जरूरी है कि गर्भवती का हीमोग्लोबिन किसी भी हाल में 11 एमजी से कम न होने पाए। मोटापे की शिकार महिलाएं भी इस लिहाज से संवेदनशील होती हैं।
डा. श्रद्धा का कहना है, समय से पूर्व जन्मे बच्चों के एनीमिक होने का खतरा रहता है, क्योंकि उनके रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी रहती है। यही कारण है कि ऐसे बच्चे अक्सर पीलिया के शिकार हो जाते हैं। शिशु के मस्तिष्क का सही से विकास न हो पाने पर सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर ऐसे बच्चों को कुछ सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में रखना पड़ता है। ऐसे बच्चों को जल्दी से संक्रमण होने का खतरा रहता है। कई बार ऐसे बच्चों की आंखें भी कमजोर होती हैं। इसलिए गर्भकाल में बेहतर खानपान और व्यसनों से दूर रहने की सलाह दी जाती है। नियमित प्रसव पूर्व जांच कराने से समय रहते प्रीमेच्योर डिलीवरी के लक्षण पता लगने पर इस आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है। योनि से होने वाले स्राव में बदलाव, पेट में ऐंठन, पीठ में दर्द और संकुचन जल्दी-जल्दी होने पर तत्काल अपनी डाक्टर से संपर्क करें।