-सुखद गृहस्थ के लिए त्याग, समर्पण व नम्रता आवश्यक: सेतिया
गाजियाबाद। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में आयोजित 233 वें वेबिनार में पूर्व सांसद स्वामी इंद्रवेश की 15 वीं पुण्यतिथि पर स्मरण किया गया और सुखद गृहस्थ के उपदेशक वेद पर योगाचार्य श्रुति सेतिया का उद्बोधन हुआ। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने स्वामी इंद्रवेश को याद करते हुए कहा कि वह कर्मठ आर्य नेता व संघर्ष शील व्यक्ति थे,उन्हें धर्म और राजनीति का समन्वय कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने आर्य सभा नाम से राजनीतिक दल की स्थापना की साथ ही वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार किया व आर्य युवा निर्माण के लिए अनेकों शिविर लगाये। उन्होंने किसान आंदोलन, मजदूर आंदोलन, अध्यापक आंदोलन का भी नेतृत्व किया। उनका व्यक्तित्व सरल रहा सभी कार्यकर्ताओं से सरलतापूर्वक अपनेपन से मिलते थे यही उनकी लोकप्रियता का पैमाना था। उन्होंने राजधर्म पत्रिका का प्रकाशन भी किया। आज के राजनेताओं के लिए उनका जीवन आदर्श हो सकता है। योगाचार्या श्रुति सेतिया ने सुखद गृहस्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सुखी गृहस्थ जीवन के लिए त्याग,समर्पण व नम्रता आवश्यक है।उन्होंने कहा कि ईगो की समस्या के कारण आज परिवार बिखर रहे है। वेद जहां अध्यात्म, ईश्वर, जीव, प्रकृति, ज्ञान- विज्ञान आदि के गंभीर ज्ञान का प्रतिपादन करते हैं, वहीं यह गृहस्थ जीवन को सुखद संपन्न बनाने का उपदेश देते हैं। वेद ज्ञान- विज्ञान के आधार हैं। मनुष्य जीवन के संप्रेरक हैं। मनुष्य जीवन का विस्तार गृहस्थ आश्रम द्वारा होता है। सुखी गृहस्थ के लिए वेद कहता है कि सबसे पहले प्रीति अनिवार्य है। गृहस्थ जीवन में सुख की प्राप्ति एवं दुखों की निवृति के लिए अनिवार्य है सबसे प्रीति करें। एक दूसरे से सत्य बोलें। संयम रखें, विषय भोगों से दूर रहें,निंदा चुगली से दूर रहें। दूसरी बात गृहस्थी निर्भय रहे,दंपति गृहस्थ जीवन को भार ना समझें। घबराएं नहीं,बल पराक्रम से आगेू बढ़े,पुरुषार्थ करें। तीसरा सुखी गृहस्थ की प्रार्थना करें, अपने को सुखी बनाना और दूसरों को सुखी रखना दंपति का महत्वपूर्ण कार्य है। दंपति रुके नहीं, चलते वाहन के सदृश्य गतिशील रहे। तेजस्वी बनें। अपने बड़ों से शिक्षा ग्रहण करें। इन भावों के धारण करने पर सुख प्राप्त होता है और दुख निवृत्त होते हैं। वेदों में पत्नी को गृह पत्नी या गृह स्वामिनी बताया गया है।वेद स्त्री को आदेश देते हैं कि उसकी दृष्टि में मृदुता हो कुटिलता नहीं। परिवार को सुख दे। वेद भक्त व आस्तिक हो। उसमें सौमनस्य हो। वह पति की हित- चिंतक हो। संयमी और तेजस्विनी हो। वेद कहता है कि गृहस्थ को सुखमय बनाने के लिए दंपति में आस्तिकता हो।वेद कहते हैं वे परमात्मा को सर्व व्यापक मानते हुए कार्य करें।ऐसा करने से मन प्रसन्न होगा तथा सभी दुर्गुण दूर होंगे। जीवन को कर्मठ बनाना, सत्य- भाषण, पारस्परिक सौहार्द, मृदुभाषी, संयमी तथा खुले हाथों से दान करना,कुछ नैतिक कर्तव्य दंपति के लिए बताए गए हैं। मुख्य अतिथि सुषमा बुद्धिराजा व अध्यक्ष आर्य नेत्री शशि चोपड़ा (कानपुर) ने गृहस्थ जीवन को सुखी बनाने का संदेश दिया। प्रांतीय महामंत्री प्रवीण आर्य ने स्वामी इंद्रवेश जी को आर्य युवाओँ का आदर्श बताया। गायिका प्रवीना ठक्कर,वीना वोहरा,सुदेश आर्या,रवीन्द्र गुप्ता, ओमप्रकाश अरोड़ा,दीप्ति सपरा, वेदिका आर्या ने भजन सुनाये। आचार्य महेन्द्र भाई, सुनीता आहूजा,शोभा सेतिया,सौरभ गुप्ता,चंद्रकांता आर्या,उर्मिला आर्या,आर पी सूरी आदि भी उपस्थित थे।