कमल सेखरी
क्या लिखो, क्या ना लिखो, हर रोज कुछ भी लिखने से पहले अपने किसी ऐसे खास को खोने की खबर आ जाती है कि कुछ भी लिखने से मन ही हट जाता है। हम बहुत छोटे हो गए और कोरोना बहुत बड़ा हो गया, ये कोरोना हमें कहां ले जाएगा, कहां तक ले जाएगा और कब तक ले जाएगा, हम कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। विश्व गुरु बनने का सपना देखने वाली हमारी सियासी व्यवस्था इतनी बौनी पड़ गई कि निर्जीव स्तब्ध सी एक कौने में जा पड़ी, वो बोल नहीं पा रही, निशब्द हो गई। असहाय मूक मौन सी बनी कहीं छिप गई, व्यवस्था के मनोनीत गुर्गे आपस में लड़ रहे हैं। पक्ष-प्रतिपक्ष बनकर एक दूसरे पर अभद्रता से वार कर रहे हैं। एक दूसरे के बाल नोच रहे हैं। अस्पतालों, कब्रिस्तानों और श्मशानों में हर रोज गहरी पीड़ा के जो स्वर उभर-उभरकर आ रहे हैं इन सियासी गुर्गों की अश्लीलता उस पीड़ा को और असहनीय बना रही है। कोरोना महामारी त्रासदी नकली सरकारी आंकड़ों और फर्जी दावों से बहुत आगे जा चुकी है। त्रासदी के इस कहर के बीच समाज का एक तबका ऐसा असामाजिक बन गया कि कालाबाजारी में जुट गया। आक्सीजन पर ब्लैक, दवाओं पर दोगुनी-तीगनी दरों की वसूली, अस्पतालों में बिस्तर दिलवाने में भारी लूट, श्मशानों में भी अंतिम क्रियाक्रम पर घूस, कब्रिस्तानों में भी मारामारी, लूट बाजारी, समूची व्यवस्था ही अव्यवस्थित हो गई। टीकाकरण की लंबी कतारों में खड़े लोग कोरोना संक्रमित होने लगे। हमारी अपनी लापरवाहियों ने और सियासी नेताओं की नासमझी और चुनाव हठ से जुड़ी अहंकारी जिद ने कोरोना को महामारी से दानवी महामारी बना दिया। 135 करोड़ आबादी के इस देश को हमारी सियासत अकेले बचा पाएगी ये सोचना भी हमारी भूल होगी। हम सबको मिलकर सहयोग देना ही होगा। अब हर चेहरे पर सिंगल नहीं डबल मास्क चाहिए। भीड़-भाड़ में दूरी बनाकर आपस में भी दो गज की दूरी रखनी होगी। कोरोना से बचाव के सभी नियमों का पालन सख्ती से करना ही होगा वरना अपनों को खोने की जो खता हम इन लम्हों में करेंगे उसकी सजा सदियों तक हमको भुगतनी पड़ेगी।