हापुड। दस्तोई रोड स्थित संयुक्त जिला चिकित्सालय में बृहद स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर आयोजित शिविर में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचीं अपर जिला जज छाया शर्मा ने शिविर का फीता काटकर उदघाटन किया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. सुनील कुमार त्यागी ने पौधा भेंटकर मुख्य अतिथि का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि मानसिक रोगियों को घृणा या हेय नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। मानसिक रोगियों के भी अपने हक और अधिकार हैं। उपचार प्राप्त करना भी उनका अधिकार है और उन्हें यह अधिकार हक से प्राप्त करना चाहिए। सीएमओ ने अपने संबोधन में मानसिक स्वास्थ्य और टीबी के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने की बात कही। कार्यक्रम में मुख्य रूप से संयुक्त जिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. प्रदीप मित्तल और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की नोडल अधिकारी डा. प्रेरणा श्रीवास्तव, साइकेट्रिस्ट डा. कावेरी सक्सेना और डा. स्वाति सिंह, साइकोलॉजिस्ट मुग्धा उपाध्याय और साइकेट्रिक सोशल वर्कर मोहम्मद अनीस उपस्थित रहे।
सीएमओ ने कहा कि इस बार विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ह्लमेंटल हेल्थ इज ए यूनिवर्सल ह्यूमन राइट की थीम पर मनाया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग का प्रयास है कि अधिक से अधिक लोगों मानसिक रोगों के बारे में जानें और झाड़-फूंक वालों पर जाने के बजाय चिकित्सकीय परामर्श से मानसिक रोगों का उपचार प्राप्त करें। यह हर मानसिक रोगी का अधिकार है। संयुक्त जिला चिकित्सालय में मानसिक रोगों के उपचार की पूरी व्यवस्था है। साइकेट्रिस्ट के साथ ही यहां काउंसलर भी तैनात हैं। क्योंकि मानसिक रोग होने पर यदि शुरूआत में ही चिकित्सकीय परामर्श ले लिया जाए तो केवल काऊंसलिंग से भी रोगी ठीक हो जाते हैं। स्थिति थोड़ी गंभीर होने पर दवाओं के साथ काउंसलिंग की जाती है।
सीएमओ डा. त्यागी ने कहा कि किसी बच्चे का यदि पढ़ने में मन ना लगता हो, चिड़चिड़ा रहता हो, मोबाइल का अधिक प्रयोग करता हो, साथ के बच्चों से घुलता मिलता ना हो, नकारात्मक विचार मन में आते हों, ऐसा बच्चा मानसिक रोग का शिकार हो सकता है। व्यवहार में परिवर्तन, उदासी और नींद न आना भी मानसिक रोग के लक्षण हो सकते हैं। संयुक्त जिला चिकित्सालय में जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ में साइकेट्रिस्ट और काउंसलर तैनात हैं, नियमित उपचार के बाद मानसिक रोग भी पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, मानसिक रोगियों को झाड़-फूंक वालों के पास न ले जाने के बजाय मनोचिकित्सक को दिखाएं। शिविर में 210 रोगियों की स्क्रीनिंग हुई, इनमें से 51 को दवा दी गई और बाकी की काउंसलिंग की गई।