हम जब कभी भी परिस्थितियों का आकलन करना चाहते हैं या आने वाले परिणामों को जानना चाहते हैं तो हम एक पुरानी कहावत से अपनी बात को जोड़ते हैं, यह कहकर कि देखो आने वाले वक्त में ऊंट किस करवट बैठेगा। भारत के सियासी इतिहास में छह महीने बाद आने वाला लोकसभा चुनाव सबसे अधिक महत्व का माना जा रहा है और देश की दिशा व दशा भी यह 2024 का आम चुनाव तय करने जा रहा है। अभी छह महीने बाकी हैं। ऊंट किस करवट बैठेगा यह अलग बात है। लेकिन एक शंका दिल और दिमाग में रह रहकर दस्तक दे रही है कि ऊंट अगले आम चुनाव से पहले बैठना तो अलग रहा पूरी तरह से गिर भी सकता है। विपक्षी दल यह अच्छी तरह जानते हैं कि 2024 का यह आम चुनाव उनके अस्तित्व को बचाने का आखिरी मौका है, अगर इस बार फिर यह मौका उनके हाथ से निकल गया तो अगले कई वर्र्षों तक सियासत में उनकी पहचान ही खत्म सी हो जाएगी और विपक्ष के नेतृत्व का एक बड़ा हिस्सा तब तक समय की मार से नहीं बच पाएगा और खत्म सा हो जाएगा। दूसरी ओर सत्ता दल भी इस बात का अच्छी तरह जानता है कि वो अगर 2024 में अपनी सत्ता नही बचा पाया तो उसका भी वही हाल होगा जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी के समय में ‘शाइन इंडिया’ के नाम पर भाजपा का हो गया था, भाजपा की ‘शाइन’ इंडिया का नाम साथ जोड़कर भी विलुप्त हो गई और उसका कोई नाम लेवा नहीं मिला। आज की सत्ता भाजपा के केवल एक नेता के ही चारों तरफ घूम रही है जैसा पहले कभी स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के चारों तरफ घूमती थी। भाजपा के पास नेतृत्व के नाम पर न तो उस समय स्वर्गीय अटल जी के अलावा कोई दूसरा नाम था और न ही आज भाजपा के पास वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा कोई दूसरा नाम सत्ता दल के पास है। नरेन्द्र मोदी के नाम ने भाजपा के नाम को न केवल छोटा बना दिया है बल्कि इतना महीन कर दिया है कि भाजपा की सरकार मोदी सरकार के नाम से जानी जाती है। अब ये मोदी सरकार है या भाजपा की सरकार, जो भी नाम दे दो लेकिन ये साफ नजर आ रहा है कि केन्द्र सरकार में मौजूदा सत्ता दल विपक्षी एकता के अब तक के प्रयासों के समक्ष बौखला गया है और यह महसूस करने लगा है कि 2024 का आम चुनाव उनके लिए सुगम रहने वाला नहीं है। वो ये भी जानते हैं कि अगर 2024 में यदि वो सत्ता से बाहर चले गए तो फिर उनकी वापसी सत्ता में अगले कई सालों तक संभव नहीं हो पाएगी। यह सच्चाई उनके शब्दों में, उनके भाषणों में और कहीं भी दिए जा रहे उनके वक्तव्य में झलक कर साफ नजर आ रही है। प्रधानमंत्री का वह विश्वास जो कुछ माह पहले तक बड़ी मजबूती से गर्जन के साथ निकलता दिखाई देता था आज वो निसंदेह घबराहट व बौखलाहट में स्पष्टता से घिरता नजर आ रहा है। लिहाजा 2024 का यह आम चुनाव विपक्षी नेताओं और सत्ता दल भाजपा के लिए करने-मरने के बराबर है। जो जीत गया वह सिंकदर और जो हार गया वह निसंदेह सियासी क्षेत्र की निचली सतह में चला जाएगा। इस बार के आम चुनाव से पहले देश में जो गदर होने का अंदेशा दिखाई पड़ रहा है वो आज की संभावनाओं व कल्पनाओं से बहुत परे है। ईश्वर न करे देश के साथ कुछ ऐसा अनिष्ट न हो कि हमें अपनी धरती पर जाति और धर्म का नंगा नाच सड़कों पर देखने को मिले। हमें ऐसी कल्पना से भी डरना चाहिए और ऊपर वाले से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस दौरान देश में कोई गृह युद्ध की स्थिति हमें देखने को न मिले। अब परिणाम जो भी हों, हम तो सच्चे मन से यही कामना करते हैं कि इस बार के चुनाव शांति से और स्नेह एवं सौहार्द के वातावरण में पूरे हो जाएं और ऊंट यानी हमारा भारत जिस करवट भी बैठे, आराम से बैठ जाए, कहीं गिरकर घायल न हो जाए। आओ दुआ करें कि हमारा यह देश राजनेताओं के जहरीले सियासी तीरों का शिकार न हो जाए।