गाजियाबाद। कभी गाजियाबाद में साहित्यिक गतिविधियों के जनक एक ही ऐसी शख्सियत श्री सनातन धर्म इन्टर कालेज के शिक्षक स्व. हर प्रसाद शास्त्री हुआ करते थे, जो पुराने शहर में गुटियल शास्त्री के नाम से प्रसिद्ध थे। यह उस समय की बात है जब यह महानगर जिला भी नहीं था, मात्र डासना तहसील का हिस्सा हुआ करता था। मुख्य आबादी भी पुराने चारों गेटों के अन्दर ही थी। गाजियाबाद शहर बना। कानपुर के बाद दूसरा बड़ा इंडस्ट्रीयल टाऊन बना। फिर 1976 में जिला बना तो एक समय यह प्रदेश को सबसे अधिक रेवेन्यू देने वाला जिला था। पश्चिम बंगाल में नक्सलियों के आतंक के बाद कलकत्ते से बहुत से बड़े उद्योग गाजियाबाद में आ गये थे। लेकिन उन उद्योगों का जल्दी पलायन भी शुरू हो गया था जब गाजियाबाद के सफेदपोशों का फिरौती का आतंक चर्म सीमा पर था।
हर प्रसाद शास्त्री पहले दिल्ली गेट होली वाले चौराहे पर रहा करते थे। फिर वह चौपला डासना गेट रहने लगे वहीं उनके सामने पूर्व मंत्री सतीश शर्मा का परिवार रहता था। जब शिब्बनपुरे में कल्पना नगर बना तो हर प्रसाद शास्त्री ने वहां मकान बना लिया तो वहां रहने लगे। कल्पना नगर में उनके अलावा रामेश्वर उपाध्याय (जो शांति कुंज वाले आचार्य श्रीराम शर्मा की पहली पत्नी के दामाद थे) रहा करते थे, उन्होंने ही जब गाजियाबाद जिला बना तो बाल पत्रिका नंदन के सम्पादक चन्द्र दत्त इंदु के साथ मिलकर गाजियाबाद का इतिहास लिखा था। इंदु जी का परिवार राजनगर सैक्टर.सात में रहता है। सेठ मुकंद लाल इन्टर कालेज के पहले प्रिंसिपल अमर नाथ सरस व आकाशवाणी और दूरदर्शन में रहे प्रख्यात लेखक गोपाल कृष्ण कौल भी वहीं रहा करते थे। उस समय सब्जी मंडी चौपला डासना गेट पर ही थी। नीचे सब्जी मंडी की दुकानें और ऊपर रिहायश हुआ करती थी। सब्जी मंडी सम्भल वाले हकीम जी की गली तक थी। वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार शर्मा बताते हैं कि मेरा जन्म 1951 में हुआ था। मैंने बचपन से देखा था जब दुल्हैंडी वाले दिन अपराह्न के बाद हर प्रसाद शास्त्री जी गधे पर उल्टे बैठकर निकलते थे तो शहर के लोग समझ जाते थे कि अब मूर्ख सम्मेलन शुरू होगा और लोगों का जमावड़ा उनके पीछे हो जाया करता था। पहले मूर्ख सम्मेलन टाऊन हॉल में हुआ करता था, फिर जब टाऊन हॉल के पास मंडी में वैश्य धर्मशाला बन गयी तो वहां होने लगा। जब भीड़ बढ़ने लगी तब रामलीला मैदान में होने लगा। जब चौधरी सिनेमा में गोष्ठी भवन बना तो हर प्रसाद शास्त्री जी ने वहां साहित्यिक गतिविधियों की शुरूआत की और देश के दिग्गज हिन्दी सेवियों का गाजियाबाद आना शुरू हुआ। तभी पत्रकारों की पुरातन पत्रकार संस्था गाजियाबाद जर्नलिस्ट्स क्लब ने गोष्ठी कक्ष में होली मिलन समारोह की शुरूआत की थी। हर प्रसाद शास्त्री से हमने वहां शुरूआत की और फिर शास्त्री ने रामलीला मैदान में होने वाला अपना होली का आयोजन करना बंद कर दिया था। वह जब तक रहे पत्रकारों के होली मिलन समारोह में शामिल होते रहे। गाजियाबाद जर्नलिस्ट्स क्लब के होली मिलन समारोह का भी बड़ा आयोजन कवि नगर रामलीला मैदान के पास आफीसर्स क्लब के मैदान में होने लगा था।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष धर्मेंद्र देव के कार्यकाल में जब गाजियाबाद महानगर बना तो उस समय मेरठ के मंडलायुक्त जो जीडीए के अध्यक्ष भी थे उनसे शास्त्री जी ने गाजियाबाद शहर के समीप हिन्दी भवन के लिए जमीन देने का अनुरोध किया और वह लोहिया नगर में वर्तमान स्थान पर जमीन लेने में सफल भी हो गये। हिन्दी भवन की जमीन के लिए धन जुटाने और उस पर भवन बनाने में उन्होंने बड़ी मशक्कत की। शम्भु दयाल महाविद्यालय के प्रवक्ता हिन्दी सेवी डॉ ब्रज नाथ गर्ग उनके प्रारंभ से ही प्रमुख सहयोगियों में से थे वह भी उनके साथ जुटे रहे और हिन्दी भवन तैयार भी हो गया और उसमें बड़े- बड़े साहित्यिक आयोजन होने लगे। 1987 में मेरे पिता जी स्व. श्याम सुंदर वैद्य (तड़क वैद्य) द्वारा स्थापित साप्ताहिक अखबार का जिसे 1973 से 2007 तक मैंने चलाया था उस अखबार की रजत जयंती का आयोजन हिन्दी भवन का पहला बड़ा समारोह था। शास्त्री जी का परिवार अमेरिका जाकर बस गया। वह बीच-बीच में अपने परिवार के पास जाते रहे लेकिन वहां उनका मन नहीं लगता था। उनके निधन के बाद जो लोग कमेटी में थे उन्होंने अपने परिवारों और मित्रों को हिन्दी भवन समिति का मेम्बर बनाकर इसकी सदस्यता की राशि बढ़ा दी और कब्जा कर लिया। अब शास्त्री जी की स्मृति को बनाए रखने के लिए उनके पुत्रों को हर वर्ष गाजियाबाद आकर मेद्यावी बच्चों, कवियों और पत्रकारों को सम्मानित करने की शुरूआत की है। इस वर्ष यह आयोजन हिन्दी भवन में 15 अक्टूबर को होगा।