- कोई नकारात्मक बात करता है तो उसके साथ कुछ देर बैठकर सकारात्मक बातें करें
- अपनों को यह अहसास दिलाते रहें कि आपको उनकी कितनी जरूरत है
- नेशनल हेल्पलाइन नंबर 1800-599-0019 पर व जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के हेल्पलाइन नंबर 971908067988 पर कॉल कर सकते हैं
गाजियाबाद। एक मित्र ने फोन किया, लेकिन व्यस्तता के चलते मैंने कहा कि फ्री होकर फोन करता हूं। शाम को घर पहुंचने पर फिर से कॉल आई। इस बार वह वीडियो कॉल कर रहा था, लेकिन मैं इस बार भी बात नहीं कर पाया। दो दिन बाद खबर मिली कि उसने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली है। अब मुझे बार-बार यह लगता है कि बात कर लेता तो शायद मेरा मित्र आज जिंदा होता। यह बातें शनिवार को जिला एमएमजी अस्पताल स्थित मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के मनकक्ष में आयोजित संगोष्ठी में एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहीं। संगोष्ठी का आयोजन विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के मौके पर किया गया था। एक अन्य चिकित्सक ने भी अपने साथ हुआ मिलता-जुलता वाकया सुनाया। संगोष्ठी की अध्यक्षता जिला अस्पताल के सीएमएस डा. मनोज चतुर्वेदी ने की।
मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. राकेश कुमार गुप्ता ने इस मौके पर कहा कि सामान्यत: आत्महत्या के तीन प्रमुख कारण होते हैं। इनमें अपेक्षाएं, डर और अकेलापन। सभी मामलों में परिवार का सहयोग जरूरी है, क्योंकि आत्महत्या का विचार जब किसी के मन में आता है तो उसका सबसे मूल कारण यही होता है कि उसकी किसी को परवाह नहीं है। सामान्य व्यवहार में भी ऐसा प्रदर्शित करने का प्रयास करें कि हमें एक-दूसरे की बहुत जरूरत है। वरिष्ठ फिजीशियन डा. आरपी सिंह, डा. आलोक और डा. शील ने भी संगोष्ठी में अपने विचार रखे।
साइकेट्रिस्ट डा. एके विश्वकर्मा ने कहा कि आवेश में आकर उठाए आत्मघाती कदम को भी रोका जा सकता है बशर्तें उस समय पीड़ित की बात सुनने वाला कोई हो। बच्चों में ऐसी प्रवृत्ति बढ़ने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि माता-पिता कितने भी व्यस्त हों लेकिन उन्हें अपने बच्चों के लिए समय जरूर निकालना चाहिए। बच्चों के सम्पर्क में रहें। स्कूल में क्या चल रहा है, इस पर चर्चा करें लेकिन कभी भी ज्यादा नंबर लाने के लिए दबाव न बनाएं। क्लीनिकल साइकेट्रिस्ट डा. चंदा यादव ने कहा कि बच्चों में आत्महत्या के मामले बढ़ना चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि समुदाय स्तर पर जागरूकता इस पर प्रभावी अंकुश लगा सकती है। कोई भी आत्महत्या करने के तीन चरणों से गुजरता है। पहले वह इस बारे में सोचता है, फिर कैसे करना है इसकी योजना बनाता है और फिर आत्महत्या करता है। यदि कोई कहता है कि काश मैं पैदा ही न हुआ होता, किसी को क्या फर्क पड़ता है- मैं मरूं या जीऊं, ऐसी बातों को गंभीरता से लेना चाहिए और उससे पूरी आत्मीयता से बात करनी चाहिए। यदि फिर भी वह परेशान लगे तो चिकित्सक के पास जाएं।
मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ ने आठ सौ से अधिक की जान बचाई : डा. साकेत
जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के साइकेट्रिस्ट कंसलटेंट डा. साकेत नाथ तिवारी ने संगोष्ठी के दौरान पिछले पांच वर्षों के आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया वर्ष 2017 से अब तक कुल 843 रोगी तीव्र आत्मघाती सोच के साथ प्रकोष्ठ में पहुंचे थे। उनकी काउंसलिंग और उपचार के बाद उन सभी को बचा लिया गया। वर्ष 2017 में 23, 2018 में 178, 2019 में 315, 2022 में 116, 2021 में 154 और 2022 में अब तक ऐसे 75 लोग चिकित्सकीय परामर्श ले चुके हैं। डा. तिवारी ने बताया आत्महत्या के मामले दो तरह के होते हैं। आवेश में आकर और योजना बनाकर। मृत्यु दर की बात करें तो यह दूसरे मामले में ज्यादा है और रोकथाम के लिए इन्हीं मामलों में ज्यादा समय मिलता है। समुदाय स्तर पर जागरूकता के अभाव में रोकथाम नहीं हो पाती।
डा. तिवारी ने कहा कि कोई व्यक्ति यदि नकारात्मक बात कर रहा है तो उसे अनदेखा न करें बल्कि थोड़ा समय देकर उसकी मन: स्थिति को समझने का प्रयास करें। यह काम चिकित्सक से बेहतर परिवार वाले, मित्र और निकट संबंधी ही कर सकते हैं। उम्मीद या होप पैदा करने के लिए कम्यूनिकेशन सबसे पहली और महती जरूरत है। उन्होंने बताया कि अवसाद ग्रसित होने वाले आठ से 10 फीसदी लोगों में आत्मघाती विचार आते हैं। समय रहते अवसाद को पहचानें और चिकित्सकीय परामर्श लें। अवसाद को लेकर शर्माएं नहीं, यह किसी को भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए नेशनल हेल्पलाइन नंबर 1800-599-0019 पर और जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के हेल्पलाइन नंबर 971908067988 पर कॉल कर सकते हैं।