- महिला नसबंदी के मुकाबले सरल और सुरक्षित शल्य क्रिया है पुरुष नसबंदी
गाजियाबाद। चलने को एक पांव से भी चल रहे हैं लोग, पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है, स्वर्गीय डा. कुंवर बेचैन की यह पंक्तियां परिवार नियोजन के संदर्भ में भी सटीक प्रतीत होती हैं। पति-पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान हैं, मिलकर चलेंगे तो न केवल सफर आसान होगा बल्कि मंजिल पाना भी आसान हो जाएगा। सरकार और स्वास्थ्य विभाग के तमाम प्रयासों के बावजूद परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी कम ही है। यह सोचनीय है। हापुड़ की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. रेखा शर्मा बताती हैं कि परिवार पूरा होने के बाद नसबंदी की बात आती है तो पुरुष खुद आगे नहीं आते। इसके पीछे मिथक है कि नसबंदी से पुरुष की शारीरिक क्षमता कमजोर हो जाती है। यह बिल्कुल गलत है और पुरुषों को ऐसे मिथक तोड़कर आगे आने की जरूरत है।
परिवार नियोजन कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. प्रवीण शर्मा कहते हैं कि परिवार नियोजन सेवाओं को सही मायने पर धरातल पर उतारने के प्रयास तभी सार्थक हो सकेंगे जब पुरुष अपनी मानसिकता बदलकर, इस वहम का पीछा छोड़ें कि पुरुष नसबंदी से शारीरिक कमजोरी आती है। उन्होंने कहा महिला नसबंदी के मुकाबले पुरुष नसबंदी ज्यादा सरल और सुरक्षित है। दो बच्चों के जन्म में कम से कम तीन वर्ष का अंतर रखने के लिए पुरुष परिवार नियोजन का अस्थायी साधन कंडोम को अपनाएं और परिवार पूरा होने पर स्थायी साधन के रूप में नसबंदी को अपनाकर परिवार नियोजन में अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। उन्होंने बताया वर्ष 2021-22 में 1159 महिलाओं ने नसबंदी कराई जबकि नसबंदी कराने वाले पुरुषों की संख्या मात्र 53 थी।
पुरुष नसबंदी विशेषज्ञ डा. रणजीत आर्य का कहना है कि पुरुष नसबंदी छोटी सी शल्य क्रिया है। इसी मिनी आॅपरेशन थिएटर में अंजाम दिया जा सकता है। यह महिला नसबंदी के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित भी है। इसकी सफलता 99.5 प्रतिशत है। नसबंदी के बाद तीन माह तक परिवार नियोजन का अस्थाई साधन कंडोम प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, उसके वीर्य की जांच के उपरांत पुरुष नसबंदी की प्रक्रिया पूरी होती है। उनका कहना है कि इस तरह यदि पति-पत्नी में किसी एक को नसबंदी की सेवा अपनाने के बारे में तय करना है तो उन्हें यह जानना जरूरी है कि महिला नसबंदी की अपेक्षा पुरुष नसबंदी बेहद आसान है और जटिलता की गुंजाइश भी कम है। हालांकि नसबंदी से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।