- कोरोना वायरस से लड़ने में भी बीसीजी रहा कामयाब
- जिनको बीसीजी का टीका दिया गया उनमें मृत्यु का प्रतिशत रहा बेहद कम
- बीसीजी का टीका इम्यून सिस्टम को भी बढ़ाता है
गाजियाबाद। वर्ल्ड टीबी दिवस के मौके पर जगह-जगह गोष्ठियां आयोजित की गर्इं। लोगों को टीबी से बचाव उपचार को लेकर जागरुक किया गया। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने भी एक विषय पर सेमिनार का आयोजन किया। टीबी रोग को लेकर हिन्ट मीडिया ने ईएनटी रोड विशेषज्ञ डा.बीपी त्यागी से बात की। डा. त्यागी ने विस्तारपूर्वक टीबी से जुड़ी बातों को बताया और बचाव को लेकर भी उन्होंने सुझाव दिए। उनका कहना है कि क्षय रोग के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। तीन हफ्तों से खांसी का आना है गंभीर होता है। उससे भी गंभीर बात यह है कि खांसी के साथ खून का आना। छाती में दर्द और सांस का फूलना वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना शाम को बुखार का आना और ठंड लगना। रात में पसीना आना। लक्षण के बारों में बताने के बाद उन्होंने बताया कि इससे बचाव कैसे किया जा सकता है। डा.बीपी त्यागी ने बताया कि बीसीजी का टीका लगवाए या अल्लोपथिक दवाओं के द्वारा इलाज कराएं।
बीसीजी का टीका आपको टीबी से तो बचाता ही है उसके साथ साथ इम्यून सिस्टम को बढ़ाता है। बीसीजी वैक्सीन वाले देशों में कोरोना केसों की संख्या काफी कम पायी गयी , यह साबित करता है की यह टीका कोरोना से बचने में भी काफी काम करता है। भारत में बचपन में दी जाने वाली ट्यूबरकुलोसिस (टीबी या तपेदिक) से बचाव की वैक्सीन कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आई थी। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण दुनियाभर में अब तक 60 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। एक नई रिपोर्ट में पता चला है कि जिन लोगों को बीसीजी वैक्सीन दी गई है, उनमें मृत्यु दर यह वैैक्सीन न लेने वाले लोगों की तुलना में काफी कम है। वैज्ञानिक अब बीसीजी यानी का टेस्ट यह देखने के लिए कर रहे हैं कि कोरोना सहित अन्य वायरस संक्रमण के असर को कम करने के लिए इम्यून सिस्टम को बढ़ाने का काम करता है
बीसीजी का टीका जन्म के तुरंत बाद लगता है। यह ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी से बचाव के लिए होता है। टीबी यानी तपेदिक से बचाव के लिए यह वैक्सीन सबसे पहले वर्ष 1920 के आसपास दुनिया में आया था। चूंकि भारत में टीबी के केसों की संख्या काफी होती है, ऐसे में देश में 1948 में पहली बार बीसीजी टीके का इस्तेमाल हुआ, 1962 में इसे टीबी प्रोग्राम में शामिल किया गया था। इस बात के कई प्रमाण मिले हैं कि टीबी के खिलाफ यूज की जाने वाली बीसीजी वैक्सीन नवजात शिशुओं ही नहीं बल्कि वैक्सीनेटेड किए गए दूसरे लोगों में भी मृत्यु दर में कमी करता है।
गौरतलब है कि कोराना वायरस की चुनौती का सामना करने के लिए देश सहित पूरी दुनिया में युद्ध स्तर पर कोशिशें जारी हैं। मेडिकल साइंस की नजर में बीसीजी का वैक्सीन बैक्टीरिया से मुकाबले के लिए रोग प्रतिरोधक शक्ति देता है, जो शरीर के इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत बनाकर रोगों से लड़ने में मदद करता है। जिन देशों के पास बीसीजी प्रोटोकॉल था, वहां और जिन देशों के पास यह रक्षा कवच नहीं था, वहां कोरोना वायरस से प्रभावितों की संख्या में करीब 10 गुना अंतर देखा गया। दूसरे शब्दों में कहें कि जिन देशों के लोगों ने बीसीजी वैक्सीन लिया है, उनकी संख्या यह वैक्सीन न लेने वाले लोगों की तुलना में काफी कम थी। अमेरिका, इटली, स्पेन, ईरान इस समय कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। अमेरिका में तो कोरोना वायरस के प्रभावितों की संख्या 90 लाख के पार पहुंच गई है।