डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत में राजद्रोह एक मजाक बनकर रह गया है। अभी तीन-चार दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र के एक सांसद के खिलाफ लगाए राजद्रोह के मुकदमे के धुर्रे बिखेरे थे। अब राजद्रोह के दो मामलों पर अदालतों की राय सामने आई है। सर्वोच्च न्यायालय ने पत्रकार विनोद दुआ के मामले में और बाबा रामदेव के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन दोनों पर राजद्रोह का मुकदमा ठोकने वालों की खूब खबर ली है। जो लोग किसी पर भी राजद्रोह का मुकदमा ठोक देते हैं, उन्हें या तो राजद्रोह शब्द का अर्थ पता नहीं है या वे भारत के संविधान की भावना का सम्मान करने की बजाय अंग्रेजों के राज की मानसिकता में जी रहे हैं। उन्होंने अपने अहंकार के फुग्गे में इतनी हवा भर ली है कि वह किसी के छूने भर से फटने को तैयार हो जाता है। विनोद दुआ और रामदेव का अपराध क्या है ? दुआ ने मोदी की आलोचना ही तो की थी, शाहीन बाग धरने और कश्मीर के सवाल पर और रामदेव ने एलोपेथी को पाखंडी-पद्धति ही तो कहा था। इसमें राजद्रोह कहां से आ गया ? क्या इन दोनों के बयान से सरकारों का तख्ता-पलट हो रहा है या कोई सांप्रदायिक या जातीय हिंसा फैल रही है ? या रामदेव के बयान से क्या हमारे देश के लाखों डॉक्टर बेरोजगार हो रहे हैं ? दुआ और रामदेव के बयानों से आप पूरी तरह असहमत हो सकते हैं, उन्हें गलत मान सकते हैं, उन पर आप दुराग्रही होने का आरोप भी लगा सकते हैं और उनकी आप भर्त्सना करने के लिए भी स्वतंत्र हैं लेकिन उनके विरुद्ध आपका अदालत में जाना एकदम हास्यास्पद है। बयान को टक्कर देना चाहते हैं तो आप बयान से दीजिए। तर्क को तर्क से काटिए। तार्किक को अदालत में घसीटना तो आपके दिमागी दिवालियापन पर मोहर लगाता है। विनोद दुआ ने दर्जनों बार टीवी पर मुझे इंटरव्यू किया है। हमारी घनघोर असहमति के बावजूद हमारे बीच कभी भी अप्रिय संवाद नहीं हुआ। दुआ हमेशा पत्रकार की मर्यादा और गरिमा का पालन करते रहे। वे आजकल काफी अस्वस्थ हैं। मैं उनके स्वास्थ्य-लाभ की कामना करता हूं। जहां तक रामदेव का सवाल है, इस चिर-युवा संन्यासी ने करोड़ों भारतीयों और विदेशियों के जीवन में अपने योग और आयुर्वेद के द्वारा नई रोशनी भर दी है। क्या हम किसी अन्य भारतीय संन्यासी की तुलना बाबा रामदेव से कर सकते हैं ? रामदेव के मुंह से एलोपेथी के बारे में जो अतिरंजित शब्द निकल गए थे, उन्होंने वे वापस भी ले लिए, फिर भी उन पर राजद्रोह का मुकदमा ठोकना कौनसी बुद्धिमानी है ? डॉक्टरों और नर्सों ने इस महामारी में अद्भुत सेवा की है। देश उनका सदा आभारी रहेगा लेकिन एलोपेथिक-चिकित्सा के नाम पर भारत में ही नहीं, सारी दुनिया में जैसी लूट-पाट मची है, उस पर भारत में कम, विदेशों में ज्यादा खोजबीन हुई है। यदि आप उसे पढ़ें तो बाबा रामदेव का कथन आपको जरा फीका लगेगा। भारत की सरकारों और अदालतों ने एलोपेथिक दवाइयों और अस्पतालों में मरीजों की लूटपाट को रोकने में जरुरी मुस्तैदी नहीं दिखाई, इस पर किसी ने अदालत के दरवाजे क्यों नहीं खटखटाए?