- मौलाना हसरत मोहानी ने ही दिया था इंकलाब जिंदाबाद का नारा
गाजियाबाद। जमियत उलमा ए हिन्द तहसील गाजियाबाद के उपाध्यक्ष एवं मीडिया प्रभारी मुफ्ती फुरकान अख्तर कासमी ने कहा कि आज हम जिस आजाद हिन्दुस्तान की आजाद फिजा में सांस ले रहे हैं और आजादी के साथ जहां चाहे वहां रह रहे हैं, संविधान की हद में रहते हुए कुछ भी कर सकते हैं, यह आजादी हमें ऐसे ही नहीं मिली है। इस आजादी को हासिल करने के लिए न जाने कितने हिन्दुस्तानी सपूतों ने अपनी जानें कुर्बान की हैं, आज हम उन्ही सपूतों में से एक ऐसे इंसान का जिक्र कर रहे हैं जिसने अपने कलम से लिखी नज्मों से बर्रे-सगीर की फिजा को ही बदल के रख दिया। बरतानवी हुकूमत से जंग-ए-आजादी के मतवालों के लिए ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे को जन्म देने वाले कोई और नही बल्कि खुद मौलाना हसरत मोहानी थे। अपने खयालात का इजहार करते हुए उन्होंने कहा कि मोहानी साहब सही मायने में हिन्दुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब के आलंबरदार थे, उनका शुमार अपने जमाने के कद्दावर सियासतदानों में होता है, ऐसे सियासतदान जिन्होंने पूरी जिन्दगी मुल्क व -मिल्लत की हिफाजत करने में लगा दी। हर साल 13 मई को मोहानी साहब के यौमे वफात के तौर पर मनाया जाता है। हिन्दुस्तान की रूह तब तक अधूरी है जब तक इसकी अपनी जुबान उर्दू की गुफ़्तगू ना हो, और उर्दू की दास्तां तब तक अधूरी रहेगी जब तक इसमें हसरत मोहानी साहब का जिक्र ना हो। हसरत मोहानी साहब की आमद के बाद हिंदुस्तान की जंग-ए-आजादी उरूज पर पहुंची। शायर मोहानी साहब अंग्रेज हुकूमत के इतने सख़्त मुखालिफ थे कि इन्होंने कुछ दूसरे सियासतदानों के बर खिलाफ मुकम्मल आजादी की मांग कर डाली थी जिससे अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिल गईं थीं। इन्होंने अपनी नज्मों में कभी हिन्दू-मुस्लिम का भेदभाव नहीं किया…अक्सर इनकी कलम से निकले हुए अल्फाज हुकूमतों के साथ साथ फिरकापरस्त ताकतों को भी डरा दिया करते थे। इनकी सोच और तर्बियत में सोशलेज्यिम का अहम हिस्सा था जिसकी जानिब से मोहानी साहब ने पूरे मशरिक की कयादत को जगाने का काम किया। मोहानी साहब हिन्दुस्तान की तकसीम के बड़े मुखालिफ थे और बड़े भारी मन से उन्होंने हिन्दुस्तान के टुकड़े होते देखा। मौलाना साहब ने हिन्दुस्तान से मोहब्बत के जज्बे में पाकिस्तान जाना नामंजूर किया और हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यकीनी तौर पर हिन्दुस्तान के साथ बने रहने के लिए रजामंद किया। उन्हें उनके यौमे वफात पर याद करना उनको सच्ची खिराज-ए-अकीदत पेश करने के बराबर होगा