डा.सलीमुददीन
ईद के मौके पर मुस्लिम घरानों में मुस्लिम नये-नये कपड़े पहनते हैं, घरों में सिवेंया और शीर बनती हैं। इस मौके पर मुस्लिम ईदगाह जाते हैं और दो रकअत नमाज अदा करते हैं। अल्लाह की बड़ाई का इजहार करते हैं। इमाम भी खुतबे में ईश्वर की प्रशंसा करते हुए अल्लाह से डरने और तकवा पैदा करने की ओर याद दिलाते हैं। इसे ईदुल फित्र इसलिए भी कहा जाता है कि मुसलमान इस मौके पर फितरा (एक खा़स दान) निकालकर गरीबों, असहायों को देकर उन्हें भी इस खुशी में शरीक करें।ईद का प्राय: मकसद रमजान के रोजे होते हैं। जो लोग रमजान के पूरे महीने रोजे रखते हैं। उनको इस पवित्र महीने का गम न हो इसलिए यह ईद वास्तविक रूप से उन्हीं रोजेदारों के लिए है। मुहम्मद साहब फरमाते हैं कि रोजेदार के लिए दो खुशी हैं एक इफ्तार के वक्त जब वो रोजा खोलता है और दूसरी खुशी जब वे अपने पालनहार से इस हाल में मिलेगा जबकि उसने दुनिया में उसके बताए हुए रास्ते पर चलकर जिÞन्दगी गुजारी होगी। चूंकि कुरआन रमजान के महीने में अवतरित हुआ जो सारी इंसानियत के लिए मार्गदर्शन है। रोजा इन्सान के अन्दर कैसे तब्दीली लाता है।
इंसान की तीन बुनियादी जरूरत होती हैं।
1.जिस्म को ताकतवर और जिंदा रखने के लिए खाना
2.नस्ल की अफजाईश प्रोडक्शन के लिए जिंसी जरूरत
3.जिस्म को रिफ्रेश रखने के लिए आराम
अगर उक्त तीनों जरूरतों में बैलेंस रहे तो जिस्म का सिस्टम और समाज सही दिशा में काम करता है और अमन शांति बनी रहती है। अगर बैलेंस बिगड़ जाए तो शरीर भी बीमार और समाज भी बीमार
कैसे?
-जो लोग अपना मकसद जिदगी खाने पीने को महज बना लें।
-जिंसी अनारकी पैदा हो जाए तो आसिफा, गीता, निर्भया जैसी बच्चियां दरिंदगी का शिकार होती हैं।
-आराम तल्बी, ऐशो आराम हद से बढ़ जाए तो शारीरिक बीमारियां तो जन्म लेती हैं। वह व्यक्ति ताकत के बावजूद कोई भी बड़ा काम नहीं कर सकता बल्कि समाज के लिए बोझ साबित होता है।
-रोजा उक्त तीनों जरुरतों में बैलेंस करने की मश्क ट्रेनिंग पूरे एक महीने कराता है। ताकि इसके असरात बाकी 11महीनों की दिनचर्या पर भी पड़ें।
कैसे?
-सुबह प्रात: काल से लेकर शाम तक खाना पीना बंद।
-अपनी बीवी को भी रोजे की हालत में जिंसी ख़्वाहिश के लिए टच तक न करने की मनाही है।
-इफ्तार करके नमाज एक डेढ़ घंटे बाद फिर लम्बी नमाज
-फिर सहरी में उठो!!!
-आपको निरंतर उठाया जाता है भूखा प्यासा रखा जाता है ताकि आपके अंदर काम, आराम, खाने में बैलेंस की ताकत हासिल हो सके।
रोजा कान, जुबान, आंख का भी है। यदि रोजे की हालत में हम किसी गलत दृष्टि से देखें, गलत बात सुनें, बुरी बात बोलें तो रोजे का मकसद ही नहीं रहता। इसलिए हमें रोजे के जरिए अपनी काम इच्छाओं, आराम तल्बी, खाने-पीने की ज्यादतियों से बचना चाहिए। भूखे रहकर ही गरीबों की भूख का अहसास होता है। यही है रोजे का असल मकसद। और ईद भी उन्हीं लोगों के लिए है। जो अपनी कामेच्छाओं को, मन की गलत इच्छाओं को कन्ट्रोल कर सकें और स्वास्थ्य समाज की स्थापना कर सकें।
यही ईद का पैगाम है।