नई दिल्ली। बालीवुड के दमदार व दक्षिण भारत सिनेता के दिग्गज अभिनेता रजनीकांत को 51 वां दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। इसकी घोषणा केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने की। पांच दशक से सिनेमा जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले रजनीकांत ने 1983 में बालीवुड में कदम रखा था। दादा साहब फाल्के पुरस्कार की घोषणा करने के लिए ज्यूरी मैंबर आशा भोंसले, मोहनलाल, विश्वजीत चटर्जी, शंकर महादेवन और सुभाष घई जैसे कलाकार शामिल रहे। कई नकारात्मक किरदारों का अभिनय करने के बाद रजनीकांत पहली बार नायक के रूप में एसपी मुथुरमन की फिल्म भुवन ओरु केल्विकुरी में दिखे थे। उनके प्रति लोगों की दीवानगी इस हद तक है कि वे उन्हें ‘भगवान’ मानते हैं। उनके दोस्त राज बहादुर ने उनके अभिनेता बनने के सपने को जिंदा रखा। उन्होंने ही रजनीकांत को मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने के लिए कहा। उनकी पहली हिंदी फिल्म अंधा कानून थी। रजनीकांत ने इसके बाद न सिर्फ तरक्की की सीढ़ियां चढ़ीं बल्कि आज वे दक्षिण भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े स्टार कहे जाते हैं। दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जन्मदाता कहा जाता है। उनके ही नाम पर हर साल ये पुरस्कार दिए जाते हैं। अब तक 50 बार ये पुरस्कार दिया जा चुका है। रजनीकांत से पहले अमिताभ बच्चन को यह पुरस्कार दिया गया था।रजनीकांत का बचपन मुश्किलों से भरा रहा है। बचपन में उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। रजनीकांत की असली नाम शिवाजी राव गायकवाड़ था। यही शिवाजी राव आगे चलकर रजनीकांत बने। रजनीकांत पांच साल के थे तभी उनकी मां का निधन हो गया। मां के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंघे पर आ गई। रजनीकांत के लिए भी घर चलाना इतना आसान नहीं था। उन्होंने घर चलाने के लिए कूली तक का काम किया। रजनीकांत फिल्मों में आने से पहले बस कंडक्टर की नौकरी करते थे। रजनीकांत ने तमिल फिल्म इंडस्ट्री में बालचंद्र की फिल्म ‘अपूर्वा रागनगाल’ से एंट्री ली थी। इस फिल्म में कमल हासन और श्रीविद्या भी थीं। रजनीकांत ने अपने अभिनय की शुरूआत कन्नड़ नाटकों से की थी। दुर्योधन की भूमिका में रजनीकांत घर-घर में लोकप्रिय हुए थे।