गाजियाबाद। कोरोना काल में यूं तो पूरा स्वास्थ्य विभाग दिन-रात अपने काम में जुटा रहा, लेकिन फिर भी कुछेक कोरोना योद्धा अपनी लगन और मेहनत के बल पर अलग जगह बना लेते हैं। आईडीएसपी (इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम) में बतौर माईक्रोबायोलॉजिस्ट तैनात डा. सुरुचि सैनी भी एक ऐसा ही नाम है। उनके पति भी स्वास्थ्य विभाग में हैं और फिलहाल बुलंदशहर जनपद में तैनात हैं। सुरुचि अपने दो बच्चों की पूरी जिम्मेदारी भी खुद संभालती हैं और डयूटी से भी कोई समझौता नहीं करतीं। बीच में कोविड का प्रकोप थोड़ा कम हुआ तो थोड़ी राहत भी मिली लेकिन अब फिर से वर्ष 2020 वाली स्थिति आ गई है। घर से आईडीएसपी आने का तो समय होता है लेकिन घर वापसी का कोई समय नहीं होता। एक साल से अधिक समय से बिना छुट्टी लिए डा. सुरुचि दिन-रात एक किए हुए हैं।
मार्च, 2020 में कोविड ने जनपद में दस्तक दी थी। उसी समय से डा. सुरुचि आईडीएसपी में कोरोना जांच रिपोर्ट बनाने में लग गईं। आईडीएसपी ही ऐसा विभाग है जो पूरे कोविड काल में सबसे ज्यादा व्यस्त रहा। स्थिति पर निगरानी के लिए आला अधिकारी भी दिन-रात इसी विभाग में कैंप किए रहते और बाहर रिपोर्ट का इंतजार करते लोगों का प्रेशर भी इस विभाग को झेलना होता। डा. सुरुचि बताती हैं कि कब इतना समय निकल गया, पता ही नहीं चला। बीच में कोविड के मामले थोड़े कम हुए, लेकिन मार्च, 2021 जाते-जाते फिर वही स्थिति हो गई। लेकिन काम करने का शुकून थकान नहीं होने देता। किसी को अपनी नौकरी ज्वाइन करने जाने के लिए जल्दी रिपोर्ट की दरकार रहती तो किसी को अपनी बहन की शादी में समय से पहुंचने के लिए। ऐसे लोगों की मदद करके जो आशीष मिलता है, वही मेरे बच्चों की हिफाजत करता है। कई बार रात में बारह-एक बजे तक भी काम करने के बाद, जरूरतमंद के चेहरे पर खुशी देखकर हमारी थकान कब छूमंतर हो जाती है, पता ही नहीं चलता। एक वर्ष में करीब साढ़े तीन लाख रिपोर्ट तैयार करने और आठ लाख से अधिक नमूनों के असाइनमेंट बनाकर डा. सुरुचि ने स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को भी उनकी मेहनत और लगन की दुहाई देने के लिए मजबूर कर दिया। इतने दिनों तक लगातार जांच में लगीं डा. सुरुचि संक्रमित भी नहीं हुईं। यह उनके काम करने का तरीका है। पूरे-पूरे दिन चेहरे से मॉस्क न हटाने की उनकी प्रतिबद्धता ही है जो विपरीत परिस्थितियों में उन्हें संक्रमण से बचाए रही। डा. सुरुचि ने 2010 में माइक्रो बायोलॉजी में पीएचडी करने के दो साल बाद 2012 में माइक्रोबायोलाजिस्ट के पद पर नौकरी शुरू की थी। नौकरी शुरू करते वक्त उनकी गोद में छह माह का बेटा था, और बेटी करीब छह वर्ष की हो गई थी। शुरू में बेटी को क्रेच में डालना पड़ा। मार्च 2020 में कोविड का प्रकोप बढ़ते ही दोनों बच्चों को नानी के पास आगरा भेज दिया और सितंबर तक वहीं रहे। डा. सुरुचि रोजाना देर रात तक आईडीएसपी में काम करतीं। कई बार पति डा. पवन सैनी उन्हें लेने आईडीएसपी पहुंचते तो काम देखकर वह भी मदद करने जुट जाते। पति डा. पवन सैनी बुलंदशहर जनपद में तैनात हैं। बेटी अक्टूबर में डेंगू की चपेट में आ गई, लेकिन डा. सुरुचि ने निजी अस्पताल में उसका उपचार भी कराया और अपनी डयूटी भी जारी रखी। कोविड के मामले बढ़ने के साथ अब फिर से दिनचर्या वैसी ही हो गई है। लेकिन इस बात की शिकन उनके चेहरे पर नहीं दिखती।