कमल सेखरी
देश में तेजी से बदल रही परिस्थितियों के बीच राजनीतिक समीकरण भी काफी तेजी से बदल रहे हैं। पिछले डेढ़ साल में कोरोना महामारी में अपने कई रूप बदलते हुए जो पीड़ा इस देश को दी है उससे भी कहीं अधिक दर्द हमारे सियासी नेता राष्टÑ को देने में जुटे हुए हैं। अगले साल 2022 के प्रारंभ में ही कई बड़े प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इन चुनावों को देखते हुए हमारे सियासी नेता जो हर रोज रंग बदल रहे हैं वो कोरोना महामारी के बदले गए रूपों पर भी काफी भारी पड़ते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश सहित आठ प्रदेशों में अगले साल राज्य के चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है और इसी प्रदेश से देश के केन्द्र की राजनीतिक परिस्थितियां भी तय होती हैं। हमने अभी हाल में पश्चिमी बंगाल के चुनावों में दो सियासी नंगा नाच देखा है शायद उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में इस तरह का नाटकीय नंगा नाच उससे भी कहीं अधिक होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं। अभी आठ माह बाकी हैं और राजनीतिक दलों ने सियासी जंग छेड़ दी है। राजनीतिक दल गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं और अपने सभी मापदंडों को दरकिनार कर आपसी तोड़फोड़ में लग गए हैं। भाजपा जिसकी वर्तमान में सरकार इस प्रदेश में है उसे अभी से आभास हो रहा है कि अगले आने वाले चुनावों में उसकी जमीन नीचे से खिसक रही है। वो अपने दल के भीतर तो उठापटक कर ही रही है साथ ही और दलों के बीच भी उसकी आपाधापी एक बड़े दबाव के साथ शुरू हो गई है। बसपा की सुप्रीमो मायावती जिसका कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश में एक बड़ा राजनीतिक दबदबा था वो अपनी साख पूरी तरह खो चुकी है और सियासी दायरे में उसकी पकड़ लगभग समाप्त होती जा रही है। अब मायावती अपनी उम्र के बचे आठ दस साल किसी ऐसे सियासी ठहराव के साथ बिताना चाहती हैं जो इस आखिरी पड़ाव में उनकी सियासी इच्छाओं को किसी तरह बनाए रखे। ऐसे में संभावना है कि वो वर्तमान की सबसे मजबूत ताकत भाजपा के साथ कोई ऐसा गठबंधन कर लें जो उन्हें दिल्ली के सियासी गलियारों में उम्र का आखिरी पड़ाव दे सके। कांग्रेस प्रियंका गांधी को आगे रखकर सामने आना चाहती है लेकिन उसके अंदर का खोखलापन उसकी इस इच्छा को मजबूती से पार उतारता नजर नहीं आ रहा है। समाजवादी पार्टी की स्थिति पहले की अपेक्षा कुछ अधिक मजबूत नजर आ रही है और ऐसे में ये संभावनाएं भी बनती दिखाई दे रही हैं कि वो अगले चुनाव में रालोद को अपना सियासी भागेदार बना ले। ऐसे में यह गठबंधन अपेक्षाकृत अधिक मजबूती पकड़ सकता है। लेकिन भाजपा तो भाजपा है। धन, बल, छल हर तरीके से मजबूत है और उसका हिन्दू कार्ड भले ही कुछ प्रभावित हुआ हो लेकिन अभी उसके हाथ में ही है। इन सब परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश की चुनावी सियासत जो रंग बदलेगी वो आने वाले समय में एक नया इतिहास जरूर रचेगी। बंगाल में अभी हाल में जो हुआ उत्तर प्रदेश में उससे कई गुना अधिक नए पैंतरों के साथ हमें देखने को मिलेगा तय है। उत्तर प्रदेश का खेला बंगाल के खेले से कहीं अधिक बड़ा और घातक हो सकता है।